अतिशय क्षेत्र पटेरिया नमन करूँ शिरनाय
गौरवशाली इतिहास एवं जैन संस्कृति का मनोरम केन्द्र जैन तीर्थ अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी गढ़ाकोटा तीर्थ हमारी संस्कृति और इतिहास के जीवन्त कोषागार है ये हमारे शाश्वत धाम और प्रेरणा के स्रोत है। संसार सागर को पार करने के लिये ये नदी के घाट के समान उपयोगी निमित्त होते है इसलिए इन्हें तीर्थ कहा गया है।
बुन्देलखंड की सदाचार प्रवर्तिनी भूमि पर ऐसे पावन जैन तीर्थों की एक श्रृंखला है जिनके दर्शन मात्र से तन और मन को शांति एवं पवित्रता प्राप्त होती है। सागर जिले के गढ़ाकोटा में स्थित श्री अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी एक ऐसा ही पावन तीर्थ है।
विशेषताएं
इस मंदिर की विशेषता यह है कि लगभग 300 वर्ष पूर्व जब प्राचीन मंदिर निर्माण शैली उत्तर भारत से अपनी पहचान खो रही थी उस काल में इस मंदिर के निर्माताओं ने गुबंद और महराबो जैसी मुगलवास्तु प्रतीकों की उपेक्षा करके अपने लिये मराठा शैली मिश्रित एक अलग प्रकार की मंदिर शैली को अपनाया इस दृष्टि से समकालीन मंदिरो मे तीर्थ पटेरिया जी निश्चित ही अपनी विशेष पहचान रखता है। इसका परकोटा इसका विशाल प्रदक्षिणा पथ और इसकी अंतः परिक्रमा की संयोजना देखकर निर्माताओं की विशुद्ध भारतीयता का भाव स्पष्ट प्रतीत होता है। इस संरचना को देख सभी भाव विभोर हो जाते है।
निर्माण काल–
इस मंदिर की प्रतिष्ठा माघ सुदी अष्टमी संवत 1839 को हुई इसके प्रति प्रतिष्ठाकारक जैन समाज के बनौनया वंश शिरोमणी श्री मोहनदास रामकिशुन जी शाह थे। इस मंदिर की पंचकल्याण प्रतिष्ठा भट्टारक श्री महेन्द्र कीर्तिजी के सानिध्य में गढ़ाकोटा के तत्कालीन शासक महाराजाधिराज हरिसिंहजू देव बुन्देला के संरक्षण में हुई।
अवस्थिति –
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी गढ़ाकोटा मध्यप्रदेश के जबलपुर सागर मार्ग पर दमोह से 32 किलोमीटर पश्चिम मे, सागर से 45 किलोमीटर पूर्व में और पथरिया से 19 किलोमीटर दक्षिण की ओर अवस्थित है। यह गधेरी एवं सुनार नदियों के संगम पर बसा एक प्रचीन अतिशयकारी, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। निकटवर्ती रेलवे स्टेशन सागर, दमोह, शाहपुर, गिरवर और पथरिया है। सभी स्टेशनो से गढ़ाकोटा तक बस सुविधा उपलब्ध है। बस स्टैन्ड से क्षेत्र की दूरी 2 किलोमीटर है। क्षेत्र तक पहुंचने के लिये बस स्टैन्ड पर आवागमन के साधन उपलब्ध है।
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क्षेत्र के आकर्षण -
- भगवान त्रिफर्णी पार्श्वनाथ की प्रतिमा अति मनोज्ञ एवं अतिशयकारी है। भगवान पार्श्वनाथ ही यहाँ के मूल नायक है। इस तरह की प्रतिमा देश मे अन्य कही दृष्टिगत नही होती है।
- एक ही पर भगवान पार्श्वनाथ की लगभग 7 फुट ऊँची तीन अतिमनोज्ञ अतिशयकारी पद्मासन प्रतिमायें विराजमान है। जिन्हें चिन्तामणी, त्रिफर्णी एवं सावलिया पार्श्वनाथ के नाम से जानते हैं। जिनकी सच्चे मन से भक्ति करने वालों की सभी प्रकार बाधाओं एवं समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
- परिक्रमा में प्रथम वेदी मे सहस्त्रफर्णी पार्श्वनाथ की अतिमनोज्ञ खडगासन प्रतिमा एवं द्वितीय वेदी मे गढ़ाकोटा किले से प्राप्त भगवान महावीर की कृष्णवर्ण प्रतिमा अन्य चार प्रतिमाओं सहित विराजमान है।
- मंदिर के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर विराजित क्षेत्रपाल बाबा भी अतिमनोज्ञ अतिशयकारी एवं मनोकामनापूर्ति प्रदायक है। पारस प्रभु के भक्तों की सारी पीडाओ का हरण करते है।
- एक दिन की रूई (कपास) के व्यापार की आमदानी मात्र से इस भव्य जिनालय का निर्माण, पंचकल्याण एवं गजरथ महोत्सव बनोनया वंश शिरोमणि श्री मोहनदास रामकिशुन जी शाह द्वारा कराया जाना अपने आप में भव्य अतिशय इस क्षेत्र का खास आकर्षण बिंदु है।
- मंदिर के पूर्व की ओर गगनचुम्भी मान स्तंम्भ स्थित है। जिसमे शांतिनाथ भगवान की प्रतिमाये विराजमान है।
- क्षेत्र की उत्तर दिशा में नब निर्मित कीर्ति स्तम्भ
- क्षेत्र की पूर्व दिशा में नव निर्मित संत भवन
- परम पूज्य उपाध्याय श्री गुप्ति सागर जी महाराज जी की माताजी की समाधि स्थली
घुनघुनिया मंदिर नामकरण
जैन तीर्थ पटेरिया जी को इस क्षेत्र मे घुनघुनिया मंदिर के नाम से जाना जाता है। मध्यरात्रि में देवो द्वारा भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति की जाती है। जिसमे वाद्य यंत्रो मे घुघरू की आवाज सुनाई देती है। इससे इस क्षेत्र को घुनघुनिया मंदिर के नाम से जाना जाता है।